सत्ता और साज़िश के सवाल के बीच "फेल्ड स्टेट" की ओर नेपाल?

जुलाई 2024 में टेलीग्राम पर धोखाधड़ी व धन शोधन के आरोपों के चलते प्रतिबंध लगाया गया। इससे पहले ओली सरकार (2018–2021) ने सोशल नेटवर्क को नियंत्रित करने की कवायद शुरू की थी। दिसंबर 2020 में अधिवक्ता बी.पी. गौतम और अनीता बजगैन ने विदेशी विज्ञापनों और अप्रतिबंधित प्रसारण पर रोक लगाने की याचिका दायर की थी। साथ ही नेपाल केबल टेलीविजन फेडरेशन के महासचिव मनोज गुरुंग ने भी सोशल मीडिया पर नियंत्रण की मांग की थी।

Sep 10, 2025 - 16:30
Sep 10, 2025 - 16:41
सत्ता और साज़िश के सवाल के बीच "फेल्ड स्टेट" की ओर नेपाल?

साधना भारद्वाज -संपादक :- 


ऐसा प्रतीत हुआ, मानो कोलम्बो का परिदृश्य अचानक नेपाल की राजधानी काठमांडो में उतर आया हो। गुस्से और अविश्वास से भरी भीड़ ने पहली बार नेताओं, नौकरशाहों, न्यायपालिका और मीडिया को एक साथ निशाने पर लिया।
मंगलवार को संसद भवन, राष्ट्रपति कार्यालय ‘शीतल निवास’, प्रधानमंत्री कार्यालय और मंत्रियों की कोठियों को भीड़ ने आग के हवाले कर दिया। पूर्व प्रधानमंत्री और नेपाली कांग्रेस के प्रमुख शेरबहादुर देउबा और उनकी पत्नी, विदेश मंत्री आरजू राणा, को बूढ़ा नीलकंठ स्थित उनके आवास से घसीट कर पीटा गया और उनके घर में आग लगा दी गई। सेना की सुरक्षा में दोनों को अस्पताल ले जाया गया।
सत्ता से बाहर चल रहे पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड भी गुस्से का शिकार हुए। उनके खुमलाटार आवास पर तोड़फोड़ की गई, जिसके बाद वे भूमिगत हो गए। सेना ने उन्हें और अन्य नेताओं को सुरक्षित थानों में शरण दिलाई। इस विद्रोह की आग से कांतिपुर पब्लिकेशन्स का मुख्यालय भी नहीं बचा—भीड़ ने देश के सबसे बड़े मीडिया हाउस की इमारत को आग के हवाले कर दिया।
नेता, नौकरशाह, न्यायपालिका और मीडिया—सभी सहमे हुए। भरोसे का इतना बड़ा स्खलन, मानो पूरा तंत्र भरभरा कर गिर गया हो।"सिंहासन खाली करो कि जनता आती है"—यह माहौल भांपकर प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने सेना प्रमुख की सलाह पर पद से इस्तीफे की घोषणा कर दी। लेकिन इस्तीफे से भी भीड़ का गुस्सा शांत नहीं हुआ।
मंगलवार सुबह प्रदर्शनकारियों ने उनके भक्तपुर स्थित निजी आवास को आग के हवाले कर दिया, फिर शाम तक काठमांडो के बलुवाटार स्थित सरकारी आवास को भी जला दिया।
सरकार में सहयोगी नेपाली कांग्रेस के मंत्री एक-एक कर इस्तीफा दे चुके थे। 3 सितम्बर को पीएम ओली चीन में विजय दिवस समारोह में शामिल हुए थे। उनके लौटते ही नेपाली कांग्रेस नेता शेखर कोइराला चीन चले गए और वहीं से पार्टी मंत्रियों को इस्तीफे का निर्देश जारी किया।
सवाल: क्या थिएनआनमन जैसा दमन संभव था?
स्थिति अब इस सवाल पर आकर ठहरती है: क्या केपी शर्मा ओली में चीन की तरह थिएनआनमन स्क्वायर जैसी कठोर कार्रवाई करने की क्षमता या इच्छा थी? या फिर नेपाल के लोकतंत्र और सामाजिक ताने-बाने ने उन्हें ऐसा करने से रोका?

नेपाल में बढ़ती अराजकता: भैंसेपाटी से नक्खू जेल तक
काठमांडू। नेपाल की राजधानी से सटे इलाके भैंसेपाटी में मंगलवार दोपहर अचानक राजनीतिक भूचाल मच गया। यहां मंत्रियों और शीर्ष अधिकारियों की कोठियों वाला कॉम्प्लेक्स देखते-ही-देखते आग की लपटों में घिर गया। सबसे पहले संचार मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग के आवास को निशाना बनाया गया, फिर आसपास के मकानों में भी आगजनी और तोड़फोड़ शुरू हो गई। हालात बिगड़ते देख नेपाली सेना ने हेलीकॉप्टरों के ज़रिये मंत्रियों और उनके परिवारों को सुरक्षित बाहर निकालना पड़ा।
नक्खू जेल पर धावा, रबी लामिछाने की रिहाई
इसी बीच, एक और नाटकीय घटनाक्रम में जेन-जेड प्रदर्शनकारियों ने नक्खू जेल पर धावा बोल दिया और पूर्व मंत्री तथा पत्रकार रबी लामिछाने को छुड़ा ले गए। यह घटना न केवल नेपाल में बढ़ती अशांति का संकेत है, बल्कि जेन-जेड प्रदर्शनकारियों के लगातार दुस्साहसी होते जाने की तरफ भी इशारा करती है।
सत्ता और साज़िश के सवाल
नेपाल की सड़कों पर हिंसा और विद्रोह के बीच यह सवाल उठ रहा है कि क्या राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल और सेनाध्यक्ष जनरल अशोक राज सिगडेल अब देश की बागडोर संभालने को मजबूर होंगे?
भारत में चर्चाओं का केंद्र अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए है, हालांकि अमेरिकी परियोजनाएं नेपाल में सामान्य ढंग से चल रही हैं। वहीं, केपी शर्मा ओली के हालिया चीन दौरे को लेकर भी शंकाएं उठ रही हैं।

'फेल्ड स्टेट' की ओर नेपाल?
विश्लेषकों का मानना है कि नेपाल की स्थिति धीरे-धीरे 'फेल्ड स्टेट' की परिभाषा को छू रही है। 2022 में श्रीलंका में आर्थिक संकट के कारण जिस तरह जनता ने राष्ट्रपति भवन तक पर धावा बोला था, वैसे हालात नेपाल में सोशल मीडिया की ताकत से अचानक उभर आए। किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि फेसबुक, टिकटॉक और टेलीग्राम जैसे मंच जनता को सड़कों पर उतार देंगे।

सोशल मीडिया और राजनीतिक दोहरापन
दिलचस्प बात यह है कि जिन नेताओं ने कभी सोशल मीडिया पर रोक लगाने का विरोध किया था, वही बाद में प्रतिबंध लगाने वाले बने।
13 नवंबर 2023 को प्रधानमंत्री प्रचंड ने सामाजिक सद्भाव का हवाला देते हुए टिकटॉक पर बैन लगाया।
अगस्त 2024 में टिकटॉक के रजिस्टर होते ही बैन हटा दिया गया। जुलाई 2024 में टेलीग्राम पर धोखाधड़ी व धन शोधन के आरोपों के चलते प्रतिबंध लगाया गया। इससे पहले ओली सरकार (2018–2021) ने सोशल नेटवर्क को नियंत्रित करने की कवायद शुरू की थी। दिसंबर 2020 में अधिवक्ता बी.पी. गौतम और अनीता बजगैन ने विदेशी विज्ञापनों और अप्रतिबंधित प्रसारण पर रोक लगाने की याचिका दायर की थी। साथ ही नेपाल केबल टेलीविजन फेडरेशन के महासचिव मनोज गुरुंग ने भी सोशल मीडिया पर नियंत्रण की मांग की थी।

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