आखिर सिख दूल्हा-दुलहन क्यों नही लेते सात फेरे! क्या है 4 फेरे लेने का राज

इस समुदाय की शादियों में भी दूल्हा-दुल्हन चार फेरे लेते हैं. इस परम्परा के बीच एक कहानी यह भी प्रचलित है कि जब राजस्‍थान के प्रसिद्ध लोक देवता पाबूजी का विवाह हो रहा था, तो विवाह की रस्में संपन्न होने के बाद अचानक डाकू एक वृद्ध महिला की गाय चुराकर भाग रहे हैं. इसलिए पशुओं की रक्षा का वचन निभाने के लिए पाबूजी ने मात्र 4 फेरों में ही अपना विवाह संपन्न कर लिया और गाय को बचाने के लिए निकल पड़े.

Jun 19, 2025 - 18:58
आखिर सिख दूल्हा-दुलहन क्यों नही लेते सात फेरे! क्या है 4 फेरे लेने का राज

विवाह को लेकर हमारे दिलो-दिमाग में जो बात सबसे पहले आती है वो है दूल्हा-दुल्हन के सात फेरे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर विवाह 7 फेरों के साथ पूरी हो ये जरूरी नहीं है. कुछ स्‍थानों पर 7 फेरों की जगह 4 फेरे भी लिए जाते हैं. हिंदू धर्म के अनुयायियों में भी कई क्षेत्रों में लोग आज भी विवाह में 7 के बजाय 4 फेरे ही लगाते हैं. सिख समुदाय में होने वाली शादियों में माना जाता है कि 4 फेरे लेने के बाद शादी की रस्म पूरी हो जाती है. यहां शादियां दिन में होती हैं और दुल्हन का पिता केसरिया रंग की पगड़ी का एक सिरा दूल्हे के कंधे पर रखता है और दूसरा सिरा दुल्हन के हाथ में रखता है और फिर फेरे शुरू होते हैं. सिख समुदाय में दूल्हा-दुल्हन गुरु ग्रंथ साहिब के चारों ओर 4 फेरे लेते हैं. इसे लावन या लावा फेरा कहते हैं. इन 4 फेरों में, पहले 3 फेरों में कन्या आगे रहती है, जबकि आखिरी फेरों में दूल्हा आगे रहता है.सिख समुदाय के अलावा कुछ ऐसे स्‍थान भी हैं जहां शादी में सिर्फ चार फेरे लिए जाते हैं और विवाह की रस्म पूरी कर दी जाती है. राजस्‍थान के कुछ राजपूत परिवारों में तो सिर्फ चार फेरे लेने की परंपरा 70 सालों से चली आ रही है. इस समुदाय की शादियों में भी दूल्हा-दुल्हन चार फेरे लेते हैं. इस परम्परा के बीच एक कहानी यह भी प्रचलित है कि जब राजस्‍थान के प्रसिद्ध लोक देवता पाबूजी का विवाह हो रहा था, तो विवाह की रस्में संपन्न होने के बाद अचानक डाकू एक वृद्ध महिला की गाय चुराकर भाग रहे हैं. इसलिए पशुओं की रक्षा का वचन निभाने के लिए पाबूजी ने मात्र 4 फेरों में ही अपना विवाह संपन्न कर लिया और गाय को बचाने के लिए निकल पड़े.

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