मोबाइल फोन पर गेम खेलने की आदत छीन रही मासूम बच्चो की जिंदगी! आखिर जिम्मेदार कौन, समाज, परिवार या तकनीक?
सीकर जिले के नीवर्तमान पार्षद अनुराग बगड़िया सी जब हमने इस मुद्दे पर बात की तो उन्होंने बताया कि आज के दौर में माता-पिता बच्चों को व्यस्त रखने के लिए उन्हें मोबाइल थमा देते हैं, जिससे धीरे-धीरे यह मनोरंजन नहीं बल्कि लत बन जाती है. यह लत नशे के समान असर करती है और बच्चे का मस्तिष्क गेम की एक अलग ही दुनिया में कैद हो जाता है.
तकनीक ने जहां जीवन को आसान बनाया है, वहीं यह नई पीढ़ी के लिए खतरे का कारण भी बनती जा रही है. अभी हालही में धौलपुर के कुरदी गांव से आई एक दर्दनाक खबर ने पूरे समाज को झकझोर दिया. 13 वर्षीय विष्णु ने पिता द्वारा मोबाइल गेम खेलने से रोके जाने पर अपनी जान दे दी. यह घटना न केवल एक परिवार को दुखी करने वाली खबर नहीं है बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी की घंटी है कि स्क्रीन की दुनिया अब बच्चों की मानसिकता पर गहरा असर छोड़ रही है. जानकारी के अनुसार, विष्णु पिछले एक वर्ष से लगातार मोबाइल पर गेम खेलने का आदी हो चुका था. पढ़ाई और परिवार से उसका जुड़ाव कम होता जा रहा था. ऐसा ही आज हर घर में हो रहा है. यह दिल दहला देने वाली घटना को लेकर आज लोकल 18 की टीम ने ग्राउंड पर जाकर पेरेंट्स और आम लोगों से बात की, हमने लोगों से पूछा कि क्या छोटे बच्चों से पीछा छुड़ाने के लिए उन्होंने मोबाइल देना सही है या गलत ? घटना के बाद सोशल मीडिया और स्थानीय जनचर्चा में यह सवाल तेजी से उठने लगा कि आखिर जिम्मेदार कौन है, बच्चा, माता-पिता या तकनीकी युग का अंधा मोह? सीकर जिले के नीवर्तमान पार्षद अनुराग बगड़िया सी जब हमने इस मुद्दे पर बात की तो उन्होंने बताया कि आज के दौर में माता-पिता बच्चों को व्यस्त रखने के लिए उन्हें मोबाइल थमा देते हैं, जिससे धीरे-धीरे यह मनोरंजन नहीं बल्कि लत बन जाती है. यह लत नशे के समान असर करती है और बच्चे का मस्तिष्क गेम की एक अलग ही दुनिया में कैद हो जाता है.
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