भारत में हर घंटे औसतन 53 सड़क हादसों में जाती है 18 लोगो की जान
गडकरी ने कहा कि सड़कों की गुणवत्ता सुधारने के लिए सरकार पहल कर रही है। लेकिन वो पहल कम जमीन पर उतरेगी और कब उसके सकारात्मक लाभ दिखेंगे, इस बारे में परिवहन मंत्री चुप ही रहे। यही समस्या है। गंभीर मसलों के लिए दूसरों की जिम्मेदारी का जिक्र हमारी राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। जब बात अपने दायित्व पर आती है, अक्सर अधिकारी सामान्य बातें कह कर निकल जाते हैं। जब तक इससे उबरा नहीं जाता, भारत की सड़कें इसी तरह जानलेवा बनी रहेंगी।
भारत में सड़क यात्रा जोखिम भरी है, यह कोई रहस्य नहीं है। हर साल आने वाले आंकड़े इस बारे में चिंता बढ़ाते हैं, लेकिन उन आंकड़ों की चर्चा थमते ही सब कुछ जैसे को तैसा चलता रहता है। इसलिए परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के इस बारे में चिंता जताने से भी सूरत बदलेगी, इसकी आशा शायद ही किसी को होगी। भारत की छवि आज यह है कि यहां ऑटो उद्योग का तेजी से विकास हुआ है, लेकिन साथ ही भारत उन देशों में बना हुआ है, जहां सड़क हादसों में सबसे ज्यादा मौतें होती है।
गडकरी भारतीय ऑटोमोबिल निर्माता संघ के वार्षिक सम्मेलन में गए, तो वहां उन्होंने कंपनियों के कर्ता-धर्ताओं को अपनी चिंता बताई। जिक्र किया कि भारत में औसतन हर घंटे 53 सड़क हादसे होते हैं और 18 लोगों की जान जाती है- यानी रोज 432 मौतें। गडकरी ने बताया कि कुल जितनी दुर्घटनाएं होती हैं, उनमें 45 प्रतिशत में दो पहिया वाहन शामिल रहते हैं। उनके अलावा पैदल चलने वाले लोग लगभग 20 प्रतिशत दुर्घटनाओं के शिकार बनते हैं।
यानी मौतों के मामले में देखें, तो निम्न मध्यम और निम्न आय वर्ग के लोग इनकी चपेट में ज्यादा आते हैं। उन मौतों के बाद पीड़ित परिवारों पर क्या गुजरती है, यह एक अलग दुखद दास्तां है। लेकिन समाधान क्या है? गडकरी ने कंपनी अधिकारियों से कहा कि उन्हें सुरक्षित ड्राइविंग सिखाने वाले स्कूल अधिक से अधिक संख्या में खोलने चाहिए। जाहिर है, यह एक सदिच्छा ही है। वैसे हादसों का एक बड़ा कारण सड़कों का असुरक्षित निर्माण भी है। स्पष्टतः इसकी जवाबदेही सरकार पर आती है। गडकरी ने कहा कि सड़कों की गुणवत्ता सुधारने के लिए सरकार पहल कर रही है। लेकिन वो पहल कम जमीन पर उतरेगी और कब उसके सकारात्मक लाभ दिखेंगे, इस बारे में परिवहन मंत्री चुप ही रहे। यही समस्या है। गंभीर मसलों के लिए दूसरों की जिम्मेदारी का जिक्र हमारी राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। जब बात अपने दायित्व पर आती है, अक्सर अधिकारी सामान्य बातें कह कर निकल जाते हैं। जब तक इससे उबरा नहीं जाता, भारत की सड़कें इसी तरह जानलेवा बनी रहेंगी।
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