बर्लिन से लेकर टोक्यो, मॉस्को से बीजिंग, तेल अवीव से लेकर तेहरान और नई दिल्ली तक, सभी की नजर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के फैंसलो पर
ट्रंप के मुख्य मतदाताओं के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। एक तरफ अपने जैसे करोड़पति और अरबपति वर्ग का लालचीपन तो दूसरी तरफ कम आय वाले और सामाजिक एवं आर्थिक रूप से दबे अपने समर्थकों की ज़रूरतों के बीच वे संतुलन कैसे बना पाएंगे, यह देखना बाकी है। विदेशी मामलों में, ट्रंप यूरोप और पश्चिम एशिया में संघर्ष को सुलझाने में व्यस्त रहेंगे। उन्होंने चुनाव प्रचार में आर्थिक और विदेश नीति पर ‘वाशिंगटन सर्वसम्मति’ नामक रुख त्यागने का वादा किया था। उनसे उम्मीद की जाती है वे रूस के व्लादिमीर पुतिन के साथ मित्रता बनाएंगे।
अमेरिका दुनिया का सबसे प्रभावशाली देश बना हुआ है। इसका राष्ट्रपति दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति होता है, जो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, सबसे बड़ी तकनीकी श्रेष्ठता एवं वैज्ञानिक आधार और सबसे विशाल सशस्त्र सेनाओं की अध्यक्षता करता है। हालांकि, यह अभी भी किसी महिला को अपना राष्ट्रपति चुनने के लिए तैयार नहीं है। डोनाल्ड ट्रम्प ने इस बार के चुनाव में अपने महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह युक्त व्यक्तित्व के बावजूद हिलेरी क्लिंटन और कमला हैरिस को हरा डाला। जाति और वर्ग के वर्चस्व वाली राजनीति में, लैंगिक पहलू पीछे छूट गया। जनमत सर्वेक्षण एक बार फिर से उलट सिद्ध हुए।
बर्लिन से लेकर टोक्यो, मॉस्को से बीजिंग, तेल अवीव से लेकर तेहरान और वास्तव में, नई दिल्ली तक भी, प्रत्येक सरकार ट्रम्प द्वारा अपनी टीम के चयन पर बारीक नज़र रखेगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह उनका दूसरा कार्यकाल होगा, उन्होंने पिछले कई सहयोगियों से किनारा कर लिया तो वहीं कइयों ने उनका साथ छोड़ दिया। दुनिया ट्रंप को नए सिरे से देखेगी क्योंकि राष्ट्रपति के इर्द-गिर्द नए चेहरे होंगे और व्हाइट हाउस में उनके पिछले कार्यकाल के बाद से दुनिया बदल चुकी है।
घरेलू स्तर पर, ट्रंप का पहला काम स्थिरता सुनिश्चित करना और अपने अल्प-सुविधा प्राप्त समर्थकों, खासकर कामकाजी वर्ग को, उम्मीद प्रदान करना होगा। अमेरिकी अर्थव्यवस्था वर्तमान में ठीक-ठाक आगे बढ़ रही है, आर्थिक विकास 2 प्रतिशत से अधिक है। हालांकि, बेरोजगारी ट्रंप के मुख्य मतदाताओं के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। एक तरफ अपने जैसे करोड़पति और अरबपति वर्ग का लालचीपन तो दूसरी तरफ कम आय वाले और सामाजिक एवं आर्थिक रूप से दबे अपने समर्थकों की ज़रूरतों के बीच वे संतुलन कैसे बना पाएंगे, यह देखना बाकी है। विदेशी मामलों में, ट्रंप यूरोप और पश्चिम एशिया में संघर्ष को सुलझाने में व्यस्त रहेंगे। उन्होंने चुनाव प्रचार में आर्थिक और विदेश नीति पर ‘वाशिंगटन सर्वसम्मति’ नामक रुख त्यागने का वादा किया था। उनसे उम्मीद की जाती है वे रूस के व्लादिमीर पुतिन के साथ मित्रता बनाएंगे। परंतु चीन को लेकर कयास है कि सख्त रुख अपनाते हुए उसके उत्पादों पर उच्च आयात शुल्क ठोकेंगे, लेकिन यह भी हो सकता है कि व्यावहारिक समझौतावादी रुख अपनाएं। पश्चिम एशिया में, उनसे ईरान को निशाना बनाने की उम्मीद की जा रही है, शायद सत्ता परिवर्तन के लिए दबाव डालते हुए, कदाचित वे इस्राइल के बेंजामिन नेतन्याहू पर नकेल कसना चाहेंगे।
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