70 घंटे की सलाह के बाद अब 90 घंटे काम करने सलाह देकर फंसे नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत! मुख्यमंत्री योगी ने ली चुटकी कहा "वो रोबोट की बात कर रहे है"
अपना रोजगार करने वाले और किसानों-मजदूरों को इससे अलग रखना चाहिए. ऐसे लोगों को संपर्क में जो भी लोग रहे हैं उन्हें पता है कि वे जितने घंटे भी जरूरत पड़ती है काम करते ही हैं. अब भले ही स्थितियां कुछ बदल गई हों, लेकिन किसान अक्सर रात के आखिरी पहर तक सिंचाई करने के लिए बिजली का इंतजार करता रहा है. किसानों-मजदूरों और छोटे दूकनदार के सामने कोई चारा नहीं है, जबकि बड़े व्यवसायी, व्यापारी, उद्योगपति सर्वसुविधा संपन्न है. खैर, चर्चा का विषय ये नहीं है.

इंफोसिस के नारायण मूर्ति के 70 घंटों के बाद एलएनटी के एसएन सुब्रह्मण्यम 90 घंटे काम की सलाह देकर अपनी किरकिरी करा चुके हैं. अब नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत ने 80-90 घंटे काम करने की युवाओं को सलाह दे डाली है. इस पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बिना अमिताभ कांत का नाम लिए कहा है कि कहीं वे इंसान की जगह रोबोट की बात तो नहीं कर रहे.
खैर, राजनीतिक बयानबाजी को दरकिनार भी कर दिया जाए तो यह सवाल बड़ा अहम हो जाता है कि आखिर कितने घंटे काम करने चाहिए. देश की सरकार और कॉरपोरेट ने काम के घंटे तय कर रखे हैं. सप्ताह में पांच दिन काम करने वाले हर दिन 9 घंटे के हिसाब से 45 घंटे काम करते हैं. सिर्फ एक दिन का वीकली ऑफ लेने वाले 8 घंटे रोजाना के हिसाब से 48 घंटे काम करते हैं. इसे बैलेंस करने के लिए 9 घंटे की शिफ्ट में ज्यादातर जगहों पर घंटे भर का एक बार या आधे-आधे घंटे का ब्रेक लेते हैं तो 48 घंटे वालों को सिर्फ एक ब्रेक आधे घंटे का रोजाना मिलता है. इस तरह से कम से कम साढ़े चवालीस-पैंतालीस घंटे काम ज्यादातर नौकरीपेशा लोग कर ही लेते हैं. अपना रोजगार करने वाले और किसानों-मजदूरों को इससे अलग रखना चाहिए. ऐसे लोगों को संपर्क में जो भी लोग रहे हैं उन्हें पता है कि वे जितने घंटे भी जरूरत पड़ती है काम करते ही हैं. अब भले ही स्थितियां कुछ बदल गई हों, लेकिन किसान अक्सर रात के आखिरी पहर तक सिंचाई करने के लिए बिजली का इंतजार करता रहा है. किसानों-मजदूरों और छोटे दूकनदार के सामने कोई चारा नहीं है, जबकि बड़े व्यवसायी, व्यापारी, उद्योगपति सर्वसुविधा संपन्न है. खैर, चर्चा का विषय ये नहीं है.
What's Your Reaction?






