भीमराव आम्बेड़कर क्यूं थे महात्मा गांधी के धुर विरोधी?
बिल्कुल साफ.” वो आगे कहते हैं, “इसलिए मैं कह सकता हूं कि मैंने गांधी के साथ जुड़े रहे लोगों की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से उन्हें समझा है. अगर मैं साफ कहूं तो मुझे इस बात की हैरानी होती है कि सभी खासतौर पर पश्चिमी जगत मिस्टर गांधी में इतनी दिलचस्पी लेता था. मुझे ये सब समझने में इसलिए परेशानी होती है कि जहां तक भारत की बात है तो वो इस देश के इतिहास में एक हिस्सा मात्र हैं, कोई युग निर्माण करने वाले नहीं. उनकी यादें लोगों के जेहन से जा चुकी हैं. जो यादें बची हैं वो इसलिए क्योकि कांग्रेस उनके जन्मदिन पर छुट्टी देती है. मुझे लगता है कि ये आर्टिफिशियल यादें मनाने का तरीका नहीं अपनाया गया होता तो गांधी को कबका भुलाया जा चुका होता.”
बीबीसी न्यूज के यूट्यूब चैनल पर उनका एक आर्काइव इंटरव्यू है जो 26 फरवरी 1955 का है. इसमें वो कहते हैं, “मैं एक कॉमन फ्रेंड के जरिए पहली बार मिस्टर गांधी से 1929 में मिला था. उस दोस्त ने मुझे उनसे मिलने की सलाह दी थी. इसके बाद मिस्टर गांधी ने एक चिट्ठी लिखकर मुझसे मिलने की इच्छा जताई. राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में शामिल होने से पहले मैं उनसे मिलने गया. फिर वो दूसरी राउंडटेबल कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने आए थे. पहली वाली कॉन्फ्रेंस में वो आए नहीं थे. वो उस दौरान 5-6 महीने के लिए वहां थे.”वो आगे कहते हैं, “जाहिर है दूसरी राउंडटेबल कॉन्फ्रेंस में मेरी उनसे मुलाकात भी हुई और आमना-सामना भी हुआ. इसके बाद पूना पैक्ट पर दस्तखत होने के बाद उन्होंने फिर मुझसे मिलने के लिए कहा. मैं उनसे मिलने गया. उस समय वो जेल में थे.”भीमराव अंबेडकर ने आगे कहा, “जितनी बार मैं मिस्टर गांधी से मिला और ये हमेशा कहता हूं कि मैं उनसे विरोधी की तरह मिला हूं. इसलिए मैं उन्हें दूसरों से कहीं ज्यादा और बेहतर तरीके से जानता हूं क्योंकि उन्होंने मुझे हमेशा जहरीले दांत ही दिखाए. मैं उस इंसान के अंदर झांककर देख पाया, जबकि दूसरे लोग वहां सिर्फ एक भक्त की तरह जाते थे और कुछ भी नहीं देख पाते थे. वो वही बाहरी छवि देखते थे जो उन्होंने अपनी महात्मा की बनाई हुई थी लेकिन मैंने उनका मानवीय रूप देखा है, बिल्कुल साफ.” वो आगे कहते हैं, “इसलिए मैं कह सकता हूं कि मैंने गांधी के साथ जुड़े रहे लोगों की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से उन्हें समझा है. अगर मैं साफ कहूं तो मुझे इस बात की हैरानी होती है कि सभी खासतौर पर पश्चिमी जगत मिस्टर गांधी में इतनी दिलचस्पी लेता था. मुझे ये सब समझने में इसलिए परेशानी होती है कि जहां तक भारत की बात है तो वो इस देश के इतिहास में एक हिस्सा मात्र हैं, कोई युग निर्माण करने वाले नहीं. उनकी यादें लोगों के जेहन से जा चुकी हैं. जो यादें बची हैं वो इसलिए क्योकि कांग्रेस उनके जन्मदिन पर छुट्टी देती है. मुझे लगता है कि ये आर्टिफिशियल यादें मनाने का तरीका नहीं अपनाया गया होता तो गांधी को कबका भुलाया जा चुका होता.”
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