हरियाणा में कांग्रेस की हवा को राहुल गांधी ने बदल दिया आंधी में! मानना पड़ेगा अब राहुल गांधी नेता हो गए हैं।

ऐसा कहा जाता है। मगर क्या यह सच है। नहीं। कभी नहीं रहा। ऐसी अनिश्चितता जनता के मिज़ाज में नहीं होती है। मगर अब एक कारण से आखिरी आखिरी तक संशय बना रहता है। और वह है चुनाव आयोग। अब यह कहा जाने लगा है कि चुनाव जनता वर्सेंस चुनाव आयोग के बीच हो रहा है। पता नहीं। लेकिन अगर होने भी लगा है तो चुनाव आयोग को यह समझ लेना चाहिए कि जनता से जीतने की होड़ न करे। जनता ने बड़े बड़े राज सिंहासन उठा कर फेंक दिए हैं। चुनाव आयोग बहुत छोटी चीज है। जनता जो चाह रही है उसे होने दें। और 8 अक्टूबर को बता दें। इतने स्पष्ट माहौल के बाद जनता इसमें घालमेल बिल्कुल बर्दाश्त नहींकरेगी।

Oct 4, 2024 - 17:18
हरियाणा में कांग्रेस की हवा को राहुल गांधी ने बदल दिया आंधी में! मानना पड़ेगा अब राहुल गांधी नेता हो गए हैं।

राहुल अब नेता हो गए हैं। उन्होंने जनता को समझा दिया कि राहुल और मोदी में क्या फर्क है। राहुल किसानों के बीच धान की रोपाई करता है। और मोदीजी अंबानी की हजारों करोड़ की शादी में जाते हैं।यहां यह बता दें कि पिछले दिनों जिन वीडियो की बहुत चर्चा हुई थी राहुल के खेत में धान रोपते हुए उस खेत के किसान संजय ने मंगलवार को उस धान से निकला चावल लाकर राहुल को भेंट किया। राहुल की बोई हुई फसल से निकला अनाज।यह तो खेत की बात थी। मगर अब ऐसा ही राजनीति में होने लगा है। राहुल को यहां केवल फसल बोना ही नहीं थी। बल्कि उससे पहले बंजर हो गए खेत तैयार भी करना थे। 2011- 2012 के बाद से कांग्रेस की जमीन सूखती चली गई। इसे फिर से आबाद करना बहुत बड़ी चुनौति थी। मोदी इसलिए निरद्वंद शासन कर रहे थे।मगर राहुल ने दो यात्राएं निकालकर कांग्रेस की सुखी जमीन को फिर हरा-भरा कर दिया। और यात्रा का महत्व समझकर उन्होंने यह हरियाणा में तीसरी यात्रा निकाल दी।दो यात्राओं में तो वे यह कहने से बचते रहे कि यह राजनीतिक यात्राएं हैं। मगर यह तीसरी और बिल्कुल छोटी तो पूरी तरह राजनीतिक यात्रा थी। और छोटी क्या उन दो विशाल यात्राओं के सामने तो बिन्दू भी नहीं। मगर प्रभाव में बहुत आगे। हरियाणा के मिज़ाज को पुख्ता कर दिया। जनता जो सोच रही थी कि अब भाजपा को हराना है वह राहुल ने पक्का करवा दिया।लेकिन यह चुनाव है कुछ भी हो सकता है। ऐसा कहा जाता है। मगर क्या यह सच है। नहीं। कभी नहीं रहा। ऐसी अनिश्चितता जनता के मिज़ाज में नहीं होती है। मगर अब एक कारण से आखिरी आखिरी तक संशय बना रहता है। और वह है चुनाव आयोग। अब यह कहा जाने लगा है कि चुनाव जनता वर्सेंस चुनाव आयोग के बीच हो रहा है। पता नहीं। लेकिन अगर होने भी लगा है तो चुनाव आयोग को यह समझ लेना चाहिए कि जनता से जीतने की होड़ न करे। जनता ने बड़े बड़े राज सिंहासन उठा कर फेंक दिए हैं। चुनाव आयोग बहुत छोटी चीज है। जनता जो चाह रही है उसे होने दें। और 8 अक्टूबर को बता दें। इतने स्पष्ट माहौल के बाद जनता इसमें घालमेल बिल्कुल बर्दाश्त नहींकरेगी।

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